बर्ग Poetry (page 4)

हर-चंद मिरा शौक़-ए-सफ़र यूँ न रहेगा

सलीम फ़राज़

फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं

सलीम फ़राज़

ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है

सलीम अहमद

मजबूरियाँ

सलाम मछली शहरी

हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिल ख़ूँ हुआ है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना के साथ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

विर्सा

साहिर लुधियानवी

नूह के बा'द

सहर अंसारी

सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया

साग़र निज़ामी

अपनी तलाश में निकले

सईद नक़वी

इक बर्ग-ए-ख़ुश्क से गुल-ए-ताज़ा तक आ गए

सईद अहमद

जो लब पे न लाऊँ वही शे'रों में कहूँ मैं

सादिक़ नसीम

'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ

सादिक़ नसीम

खेल रचाया उस ने सारा वर्ना फिर क्यूँ होता मैं

साबिर वसीम

क्यूँ न हम सोच के साँचे में ही ढल कर देखें

सादुल्लाह शाह

हर तल्ख़ हक़ीक़त का इज़हार भी करना है

रूही कंजाही

हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए

रियाज़ लतीफ़

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

चाहतों का जो शजर है दोस्तो

रिफ़अत अल हुसैनी

ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे

रज़ी मुजतबा

हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

सफ़र से किस को मफ़र है लेकिन ये क्या कि बस रेग-ज़ार आएँ

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

कोई साया न शजर याद आया

राशिद हामिदी

गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला

राम रियाज़

इधर की आवाज़ इस तरफ़ है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हमें लपकती हवा पर सवार ले आई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक ढेर राख में से शरर चुन रहा हूँ मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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