बर्ग Poetry (page 5)

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

राज कुमार सूरी नदीम

घर मुझे रात भर डराए गया

रईस फ़रोग़

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

माना कि तू सवार है और मैं पियादा हूँ

रईस अमरोहवी

गर्द में अट रहे हैं एहसासात

रईस अमरोहवी

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

हरा-भरा था चमन में शजर अकेला था

इंतिख़ाब अालम

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ

इमरान-उल-हक़ चौहान

अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

आहों से होंगे गुम्बद-ए-हफ़्त-आसमाँ ख़राब

इमदाद अली बहर

गर्द-ओ-ग़ुबार धूप के आँचल पे छा गए

इमाम अाज़म

ज़ीस्त-मिज़ाजों का नौहा

इलियास बाबर आवान

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

एक दुनिया कह रही है कौन किस का आश्ना

हुरमतुल इकराम

लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो

होश तिर्मिज़ी

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

फिरी सी देखता हूँ इस चमन की कुछ हवा बुलबुल

हसरत अज़ीमाबादी

जो नक़्श-ए-बर्ग-ए-करम डाल डाल है उस का

हसन अज़ीज़

तिश्ना-कामों को यहाँ कौन सुबू देता है

हसन आबिदी

इंतिबाह

हामिदी काश्मीरी

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

शजर-ए-तर न यहाँ बर्ग-ए-शनासा कोई

हमीद अलमास

रख दिया है मिरी दहलीज़ पे पत्थर किस ने

हमीद अलमास

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

आमदनी और ख़र्च

हाजी लक़ लक़

रोज़-ए-मौलूद से साथ अपने हुआ ग़म पैदा

हैदर अली आतिश

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