उस रात लम्स-ए-माह से
इक बीज मेरे ख़ून में
बेदार हो गया
रग रग में बर्ग-ओ-शाख़
तनावर शजर बना
वीराना-ए-तपाँ से गुज़रती है जब हुआ
नोकीले नीले पत्तों से टप टप
दमकते ज़हर की बूँदें
टपकती हैं
हज़र करो
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यक-ब-यक क्यूँ बंद दरवाज़े हुए
लैल-ए-शब-ताब चटानों में नहीं
ये चलती-फिरती सी लाशें शुमार करने को
आए मशरिक़ से शहसवार बहुत
ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे
इदराक
इंतिबाह
बस उसी का सफ़र-ए-शब में तलबगार है क्या
ख़ुद ही बे-आसरा करते हैं
निगाह-ए-शौक़ क्यूँ माइल नहीं है
उस पल से
सहर-ना-आश्ना कोई नहीं है