मांग Poetry

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

अना

अज़ीज़ क़ैसी

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में

अब्दुल्लाह कमाल

एक तो इश्क़ की तक़्सीर किए जाता हूँ

नईम गिलानी

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

मज़दूर

बुशरा सईद

ज़िंदगी और मौत

फ़ज़लुर्रहमान

ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम

इज़हार-ए-हाल सुन के हमारा कभी कभी

घटाएँ छाई हैं साग़र उठा ले जिस का जी चाहे

दाग़-ए-दिल दाग़-ए-तमन्ना मिल गया

ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

ज़ुहूर नज़र

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

सुब्ह तक बे-तलब मैं जागूँगा

ज़ुबैर क़ैसर

सुब्ह तक बे-तलब मैं जागूँगा

ज़ुबैर क़ैसर

हम जो गिर कर सँभल जाएँगे

ज़ुबैर अमरोहवी

अब इस का चारा ही क्या कि अपनी तलब ही ला-इंतिहा थी वर्ना

ज़िया जालंधरी

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