मांग Poetry (page 18)

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त

ग़ालिब

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब

ग़ालिब

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

ग़ालिब

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है

ग़ालिब

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी

ग़ालिब

कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए

ग़ालिब

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है

ग़ालिब

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

दूसरा कप

गीताञ्जलि राय

ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है

गौहर होशियारपुरी

समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे

गौहर होशियारपुरी

मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो

गौहर होशियारपुरी

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन

फ़ितरत अंसारी

हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

फ़िगार उन्नावी

बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया

फ़ाज़िल अंसारी

उम्र भर एक सी उलझन तो नहीं बन सकते

फ़े सीन एजाज़

ख़र्च जब हो गई जज़्बों की रक़म आप ही आप

फ़े सीन एजाज़

घर की मुश्किल कोई हल चाहती है

फ़े सीन एजाज़

दर-ए-फ़क़ीर पे जो आए वो दुआ ले जाए

फ़रताश सय्यद

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