मांग Poetry (page 20)

न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी

फ़ना बुलंदशहरी

मक़ाम-ए-होश से गुज़रा मकाँ से ला-मकाँ पहुँचा

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा

फ़ना बुलंदशहरी

हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है

फ़ना बुलंदशहरी

ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिल

फ़ना बुलंदशहरी

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

आँखों में नमी आई चेहरे पे मलाल आया

फ़ना बुलंदशहरी

सुब्ह-ए-नौ लाती है हर शाम तुम्हें क्या मा'लूम

फ़ैज़ुल हसन

जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वासोख़्त

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जिस रोज़ क़ज़ा आएगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम जो तारीक राहों में मारे गए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक शहर-आशोब का आग़ाज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर-ए-उमीद के दरयूज़ा-गर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बुनियाद कुछ तो हो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आरज़ू

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

यक-ब-यक शोरिश-ए-फ़ुग़ाँ की तरह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ मोहतसिबों की ख़ल्वत में कुछ वाइ'ज़ के घर जाती है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ दिन से इंतिज़ार-ए-सवाल-ए-दिगर में है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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