मांग Poetry (page 19)

अपनी आग में

फ़ारूक़ मुज़्तर

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

कितने शिकवे गिले हैं पहले ही

फ़ारिग़ बुख़ारी

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

अब ज़िंदगी रो रो के गुज़ारेंगे नहीं हम

फ़रहत नदीम हुमायूँ

कुछ तो वुफ़ूर-ए-शौक़ में बाइ'स-ए-इम्तियाज़ हो

फ़रहत कानपुरी

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

फ़रहत एहसास

मेरी मिट्टी का नसब बे-सर-ओ-सामानी से

फ़रहत एहसास

ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ

फ़रहत एहसास

अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है

फ़रहत एहसास

कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है

फ़रीद परबती

सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ

फ़रीद परबती

हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं

फ़रीद परबती

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

सदा-ए-कुन से भी पहले किसी जहान में थे

फ़राज़ महमूद फ़ारिज़

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

मिरे हम-रक़्स साए को बिल-आख़िर यूँही ढलना था

फ़रह इक़बाल

ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ

फ़ानी बदायुनी

वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा

फ़ानी बदायुनी

वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई

फ़ानी बदायुनी

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

जीने की है उम्मीद न मरने का यक़ीं है

फ़ानी बदायुनी

चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद

फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

फ़ना बुलंदशहरी

वो आश्ना-ए-मंज़िल-ए-इरफ़ाँ हुआ नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

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