तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

आँखों को वर्ना जल्वा-ए-जानाँ कहाँ न था

आलम-ए-जुज़-ए'तिबार-ए-निहाँ-ओ-याँ न था

यानी कि तू अयाँ न हुआ और निहाँ न था

अब तक तिरी गली में ये रुस्वाइयाँ न थीं

अब तक तो इस ज़मीं पे कोई आसमाँ न था

क्या दिन थे जब मआल-ए-वफ़ा की ख़बर न थी

वो दिन भी थे कि हाल-ए-वफ़ा दास्ताँ न था

तल्क़ीन-ए-सब्र दिल से तो कोई दुश्मनी न थी

देखा ये हाल क़ाबिल-ए-शरह-ओ-बयाँ न था

मफ़्हूम-ए-काएनात तुम्हारे सिवा नहीं

तुम छुप गए नज़र से तो सारा जहाँ न था

हर शाख़ हर शजर से न था बिजलियों को लाग

हर शाख़ हर शजर पे मिरा आशियाँ न था

आग़ोश-ए-मौत में तह-ए-दामान-ए-यार हूँ

वो दिन गए कि मुझ पे कोई मेहरबाँ न था

आज़ुर्दा था कि ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ में असर नहीं

शर्मिंदा हूँ कि ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ राएगाँ न था

हो भी चुके थे दाम-ए-मोहब्बत में हम असीर

आलम अभी ब-क़ैद-ए-ज़मान-ओ-मकाँ न था

अल्लाह रे बे-नियाज़ी-ए-आदाब-ए-इल्तिफ़ात

देखा मुझे तो पाए नज़र दरमियाँ न था

मेरे दिल-ए-ग़ुयूर का हुस्न-ए-तलब तो देख

गोया ज़बाँ पे हर्फ़-ए-तमन्ना गिराँ न था

तू ने करम किया तो ब-उनवान-ए-रंज-ए-ज़ीस्त

ग़म भी मुझे दिया तो ग़म-ए-जावेदाँ न था

'फ़ानी' फ़ुसून-ए-मौत की तासीर देखना

ठहरा वो दिल कि जिस पे सुकूँ का गुमाँ न था

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