जिस्म-ए-आज़ादी में फूंकी तू ने मजबूरी की रूह
ख़ैर जो चाहा किया अब ये बता हम क्या करें
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जीने की है उम्मीद न मरने का यक़ीं है
कुछ कम तो हुआ रंज-ए-फ़रावान-ए-तमन्ना
किसी को क्या मिरे सूद ओ ज़ियाँ से
दैर में या हरम में गुज़रेगी
मुझे बुला के यहाँ आप छुप गया कोई
मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख
वो नज़र कामयाब हो के रही
जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
हर साँस के साथ जा रहा हूँ
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक