मलाल Poetry

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में

ज़ोहरा नसीम

हर आदमी कहाँ औज-ए-कमाल तक पहुँचा

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

चमका जो तीरगी में उजाला बिखर गया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

ज़फ़र गोरखपुरी

मोहब्बत पे शायद ज़वाल आ रहा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे

यूसुफ़ तक़ी

जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख

यासमीन हबीब

वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से

यशब तमन्ना

वस्ल भी हिज्र था विसाल न था

यशब तमन्ना

जो तू नहीं तो मौसम-ए-मलाल भी न आएगा

याक़ूब यावर

आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ

वसी शाह

क्या हिज्र में जी निढाल करना

वाली आसी

हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते

वाली आसी

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

वहीद अख़्तर

मलाल

वली मदनी

मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया

उमैर नजमी

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम

गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद

तौसीफ़ तबस्सुम

कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए

तारिक़ क़मर

ग़म-ए-जहाँ में ग़म-ए-यार ज़म न कर पाया

तालिब हुसैन तालिब

दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो

तल्हा रिज़वी बारक़

उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

तैमूर हसन

सजा लिया है हथेली पे हम ने उस का नाम

ताहिरा जबीन तारा

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

ताहिरा जबीन तारा

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