किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला
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जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है
आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैं
ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई
कुछ कम तो हुआ रंज-ए-फ़रावान-ए-तमन्ना
मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात
हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री
ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया
की वफ़ा यार से एक एक जफ़ा के बदले
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है