मता Poetry

हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कंगाल

हारिस ख़लीक़

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

मैं तिरे लुत्फ़-ओ-करम का जब से रस पीने लगा

अख़्तर हाशमी

कुछ गुनह नहीं इस में ए'तिराफ़ ही कर लो

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

क्यूँ मता-ए-दिल के लुट जाने का कोई ग़म करे

ज़ुबैर रिज़वी

था हर्फ़-ए-शौक़ सैद हुआ कौन ले गया

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

ये उदासी ये फैलते साए

ज़ेहरा निगाह

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो

ज़हीर देहलवी

क्या ख़बर किस मोड़ पर बिखरे मता-ए-एहतियात

ज़फ़र मुरादाबादी

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

ग़म इतने अपने दामन-ए-दिल से लिपट गए

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए

यूसुफ़ ज़फ़र

तन्हाई में अक्सर यही महसूस हुआ है

यज़दानी जालंधरी

याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है

वलीउल्लाह मुहिब

किस तरह उस को बुलाऊँ ख़ाना-ए-बर्बाद में

तनवीर अंजुम

धूमें मचाएँ सब्ज़ा रौंदें फूलों को पामाल करें

ताबिश देहलवी

हर मोड़ को चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र कहो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

बोली लगी मता-ए-हुनर की तो अहल-ए-फ़न

सय्यद अनवार अहमद

किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते

सय्यद अमीन अशरफ़

किस तरह ज़िंदा रहेंगे हम तुम्हारे शहर में

सय्यद अहमद शमीम

यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए

सय्यद आबिद अली आबिद

तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी

सिराज लखनवी

तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है

सिकंदर अली वज्द

हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है

सिकंदर अली वज्द

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