शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
फिर करोगे कभी इस मुँह से शिकायत मेरी
Jaun Eliya
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(858) Peoples Rate This
जौर को जौर भी अब क्या कहिए
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
मुस्कुराए वो हाल-ए-दिल सुन कर
वो पूछते हैं हिज्र में है इज़्तिराब क्या
मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही
क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख
बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते
रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
मुझे बुला के यहाँ आप छुप गया कोई