रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
रोज़ दिल में तिरी तस्वीर बदल जाती है
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लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
ना-मेहरबानियों का गिला तुम से क्या करें
बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
हो काश वफ़ा वादा-ए-फ़र्दा-ए-क़यामत
नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना
वो हूर को चाहा कि परी को चाहा
की वफ़ा यार से एक एक जफ़ा के बदले
हर तबस्सुम का दिया एक तबस्सुम से जवाब
कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख
हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना
ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए