हर मुसीबत का दिया एक तबस्सुम से जवाब
इस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को रुलाया मैं ने
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अदा से आड़ में ख़ंजर के मुँह छुपाए हुए
जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
माया-ए-नाज़-ए-राज़ हैं हम लोग
मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया
मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख
हो काश वफ़ा वादा-ए-फ़र्दा-ए-क़यामत
हर साँस के साथ जा रहा हूँ
वाहिमे की ये मश्क़-ए-पैहम क्या
लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं