रिश्ते Poetry

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

कहानी ओढ़ ली मैं ने

फ़ाख़िरा बतूल

रिसता दर्द

ममता तिवारी

किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे

ये लम्हा लम्हा तकल्लुफ़ के टूटते रिश्ते

ज़ुबैर रिज़वी

तिलिस्म-ए-हर्फ़-ओ-हिकायत उसे भी ले डूबा

ज़ुबैर रिज़वी

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

ज़ुबैर रिज़वी

चाक

ज़िया जालंधरी

बुलावा

ज़ेहरा निगाह

न आँसुओं में कभी था न दिल की आह में है

ज़मीर काज़मी

ख़ून के जो रिश्ते थे बन गए अज़ाब-ए-जाँ

ज़मीर अतरौलवी

ख़्वाब-नगर के शहज़ादे ने ऐसे भी निरवान लिया

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इश्क़ में तेरे जंगल भी घर लगते हैं

ज़किया ग़ज़ल

सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से

ज़फ़र सहबाई

एक जुम्बिश में कट भी सकते हैं

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं

ज़फर इमाम

मैं ज़िंदगी का नक़्शा तरतीब दे रहा हूँ

ज़फ़र हमीदी

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

ज़फ़र गोरखपुरी

तुम्हारी जुस्तुजू की है वहाँ तक

यूनुस ग़ाज़ी

मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया

याक़ूब यावर

बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है

वसीम ताशिफ़

सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते

वसीम बरेलवी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं

वसीम बरेलवी

वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता

वसीम बरेलवी

उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया

वसीम बरेलवी

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

वसीम बरेलवी

है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

प्यार के बंधन रिश्ते देखो

वाजिद सहरी

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