रिश्ते Poetry (page 7)

क़ुर्ब के न वफ़ा के होते हैं

अख़्तर मालिक

अपना दुख अपना है प्यारे ग़ैर को क्यूँ उलझाओगे

अख़तर इमाम रिज़वी

रो रो के बयाँ करते फिरो रंज-ओ-अलम ख़ूब

अजमल सिद्दीक़ी

मैं जिन को अपना कहता हूँ कब वो मिरे काम आते हैं

आजिज़ मातवी

मय-ख़ाने पर काले बादल जब घिर घिर कर आते हैं

आजिज़ मातवी

मैं तकिए पर सितारे बो हा हूँ

ऐतबार साजिद

दिल की ख़्वाहिश बढ़ते बढ़ते तूफ़ाँ होती जाती है

अहमद शाहिद ख़ाँ

रूह लबों तक आ कर सोचे

अहमद नदीम क़ासमी

अपने माहौल से थे क़ैस के रिश्ते क्या क्या

अहमद नदीम क़ासमी

धुँद के रिश्ते है

अहमद हमेश

बे-बर्ग शजर

अहमद हमेश

तो बेहतर है यही

अहमद फ़राज़

मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने से

अदीब सहारनपुरी

कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत

अब्दुल्लाह जावेद

नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म

अब्दुल अहद साज़

मुतज़ाद ज़ाविए

अब्दुल अहद साज़

बे-निशाँ होने से पहले

अब्दुल अहद साज़

यूँ भी दिल अहबाब के हम ने गाहे गाहे रक्खे थे

अब्दुल अहद साज़

सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा

अब्दुल अहद साज़

वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं

आज़िम कोहली

बात बच्चों की थी लड़ने को सियाने निकले

अातिश इंदौरी

ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में

आलोक श्रीवास्तव

जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो

आले रज़ा रज़ा

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