प्रलोभन Poetry

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

रख दिया ख़ल्क़ ने नाम उस का क़यामत ऐ 'ज़ेब'

ज़ेब उस्मानिया

ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं

ज़ेब उस्मानिया

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

सब्र ख़ुद उकता गया अच्छा हुआ

याक़ूब उस्मानी

मैं चाहूँ भी तो ज़ब्त-ए-गुफ़्तुगू मैं ला नहीं सकता

याक़ूब उस्मानी

जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है

वसीम ख़ैराबादी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ

वाहिद प्रेमी

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

आख़िर वो इज़्तिराब के दिन भी गुज़र गए

वारिस किरमानी

सर-ता-ब-क़दम एक हसीं राज़ का आलम

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

वो जब आप से अपना पर्दा करें

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

बस का सफ़र

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

न इब्तिदा-ए-जुनूँ है न इंतिहा-ए-जुनूँ

सुहैल काकोरवी

मैं कहा क्या अरक़ है तुझ रुख़ पर

सिराज औरंगाबादी

तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के

शुजा ख़ावर

ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे

शुजा ख़ावर

कोई कमर को तिरी कुछ जो हो कमर तो कहे

ज़ौक़

गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं

ज़ौक़

वो ले के दिल को ये सोची कहीं जिगर भी है

शौक़ क़िदवाई

हुई या मुझ से नफ़रत या कुछ इस में किब्र-ओ-नाज़ आया

शौक़ क़िदवाई

न जब देखी गई मेरी तड़प मेरी परेशानी

शौक़ बहराइची

किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने

शौक़ बहराइची

ये क्या अंदाज़ हैं दस्त-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ के

शम्स इटावी

ला रहा है मय कोई शीशे में भर के सामने

शकील बदायुनी

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