प्रलोभन Poetry (page 2)

ग़म-ए-जहाँ के फ़साने तलाश करते हैं

शकील बदायुनी

आदाब-ए-आशिक़ी से बेगाना कह रही है

शकील बदायुनी

तरीक़त में अगर ज़ाहिद मुझे गुमराह जाने है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

लेते हैं लोग साँस भी अब एहतियात से

शहज़ाद अहमद

घर जला लेता है ख़ुद अपने ही अनवार से तू

शहज़ाद अहमद

ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा

शाह नसीर

फ़ित्ने जो कई शक्ल-ए-करिश्मात उठे हैं

शानुल हक़ हक़्क़ी

तिरा वहशी कुछ आगे है जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ से

सेहर इश्क़ाबादी

दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए

सीमाब अकबराबादी

वो आरिज़ गुलाबी वो गेसू घनेरे

सैफ़ी प्रेमी

हर एक बंदिश-ए-ख़ुद-साख़्ता बयाँ से उठा

सहबा वहीद

बयान-ए-लग़्ज़िश-ए-आदम न कर कि वो फ़ित्ना

सहबा अख़्तर

सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा

सहबा अख़्तर

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

सफ़ी लखनवी

हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले

साइल देहलवी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

घर की रौनक़

रज़ा नक़वी वाही

ख़िरद को गुमशुदा-ए-कू-ब-कू समझते हैं

रविश सिद्दीक़ी

आने को नज़र में मिरी सौ फ़ित्ना-गर आए

रसा रामपुरी

सौदा-ए-सज्दा शाम-ओ-सहर मेरे सर में है

रंजूर अज़ीमाबादी

वही इक मौसम-ए-सफ़्फ़ाक था अंदर भी बाहर भी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़बानों पर नहीं अब तूर का फ़साना बरसों से

इक़बाल सुहैल

इश्क़ इतना कमाल रखता है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

मुदावा-ए-दिल-ए-दीवाना करते

हसरत मोहानी

नज़र उस पर फ़िदा है जिस की ताबानी नहीं जाती

हसरत कमाली

गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता

हसरत अज़ीमाबादी

हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज

हमीद नागपुरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

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