प्रलोभन Poetry (page 3)

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़

हबीब मूसवी

क्या बताऊँ आज वो मुझ से जुदा क्यूँकर हुआ

गोपाल कृष्णा शफ़क़

गली से अपनी इरादा न कर उठाने का

ग़ुलाम मौला क़लक़

है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला

ग़ुलाम मौला क़लक़

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

ग़ालिब

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ग़ालिब

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ग़ालिब

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है

फ़ानी बदायुनी

दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख

फ़ानी बदायुनी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

होश आते ही हसीनों को क़यामत आई

दाग़ देहलवी

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

दाग़ देहलवी

मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है

बहज़ाद लखनवी

हिकमत का बुत-ख़ाना

बेबाक भोजपुरी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़

बासिर सुल्तान काज़मी

तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है

ज़फ़र

निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ

ज़फ़र

न हुई हम से शब बसर न हुई

अज़ीज़ लखनवी

साक़ी

असरार-उल-हक़ मजाज़

नौ-जवान ख़ातून से

असरार-उल-हक़ मजाज़

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