कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

ब-हसरत सू-ए-चर्ख़-ए-फ़ित्ना-सामाँ देख लेते हैं

नज़र हुस्न आश्ना ठहरी वो ख़ल्वत हो कि जल्वत हो

जब आँखें बंद कीं तस्वीर-ए-जानाँ देख लेते हैं

शब-ए-वादा हमेशा से यही मामूल है अपना

सहर तक राह-ए-शोख़-ए-सुस्त-पैमाँ देख लेते हैं

ख़ुदा ने दी हैं जिन रौशन-दिलों को दूर-बीं नज़रें

सवाद-ए-कुफ़्र में वो नूर-ए-ईमाँ देख लेते हैं

दिल-ए-बेताब का इसरार माने शर्म-ए-रुस्वाई

बचा कर सब की नज़रें सू-ए-जानाँ देख लेते हैं

वो ख़ुद सर से क़दम तक डूब जाते हैं पसीने में

भरी महफ़िल में जो उन को पशीमाँ देख लेते हैं

टपक पड़ते हैं शबनम की तरह बे-इख़्तियार आँसू

चमन में जब कभी गुल-हा-ए-ख़ंदाँ देख लेते हैं

निगाह-ए-नाज़ की मस्ताना ये निश्तर-ज़नी कैसी

ब-वक़्त-ए-फ़िस्द रगज़न भी रग-ए-जाँ देख लेते हैं

असीरान-ए-सितम के पासबानों पर हैं ताकीदें

बदलते हैं जो पहरा क़ुफ़्ल-ए-ज़िंदाँ देख लेते हैं

'सफ़ी' रहते हैं जान ओ दिल फ़िदा करने पे आमादा

मगर उस वक़्त जब इंसाँ को इंसाँ देख लेते हैं

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In Hindi By Famous Poet Safi Lakhnavi. is written by Safi Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Safi Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.