दश्त Poetry

हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

दश्त-ए-उम्र

काशिफ़ रफ़ीक़

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

अपना सोचा हुआ अगर हो जाए

अहमद महफ़ूज़

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

ख़ुश-शनासी का सिला कर्ब का सहरा हूँ मैं

अब्दुल्लाह कमाल

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

बे-साया पेड़

काशिफ़ रफ़ीक़

ज़ाबता

हबीब जालिब

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

अँधेरों से उलझने की कोई तदबीर करना है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

कुछ गुनह नहीं इस में ए'तिराफ़ ही कर लो

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हम ने सारे हर्फ़ लिखे तो किस के लिए

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सुनते हैं जो हम दश्त में पानी की कहानी

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

जीने की है उमीद न मरने की आस है

ज़ुहैर कंजाही

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

तिरी तस्वीर उठाई हुई है

ज़ुबैर क़ैसर

कहीं से आया तुम्हारा ख़याल वैसे ही

ज़ुबैर क़ैसर

अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में

ज़ोहरा नसीम

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम

ज़ेहरा निगाह

इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला

ज़ेहरा निगाह

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