दश्त Poetry (page 39)

नक़्श-ए-यक़ीं तिरा वजूद-ए-वहम बुझा गुमाँ बुझा

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा

अबु मोहम्मद सहर

सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए

अबु मोहम्मद सहर

फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए

आबरू शाह मुबारक

सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान

आबरू शाह मुबारक

गुम-शुदा

अबरार आज़मी

ये ऊँट और किसी के हैं दश्त मेरा है

अबरार अहमद

हम कि इक भेस लिए फिरते हैं

अबरार अहमद

हवा हर इक सम्त बह रही है

अबरार अहमद

आँखें तरस गई हैं

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

अपने अंदर भी हम-नवाई नहीं

आबिद वदूद

बे-तमन्ना हूँ ख़स्ता-जान हूँ मैं

आबिद मुनावरी

अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी

आबिद मलिक

किसी मक़ाम पे हम को भी रोकता कोई

आबिद आलमी

मज़ीद कुछ नहीं बोला मैं हो गया ख़ामोश

अब्दुर्राहमान वासिफ़

कुछ न किया अरबाब-ए-जुनूँ ने फिर भी इतना काम किया

अब्दुर रऊफ़ उरूज

वो शख़्स क्या है मिरे वास्ते सुनाएँ उसे

अब्दुल्लाह कमाल

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे

अब्दुल्लाह कमाल

इस तरह रुख़ फेरते हो सुनते ही बोसे की बात

अब्दुल वहाब यकरू

महक रहा है तसव्वुर में ख़्वाब की सूरत

अब्दुल वहाब सुख़न

बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

जाना कहाँ है और कहाँ जा रहे हैं हम

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

पाँव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं

अब्दुल हमीद

किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्या

अब्दुल हमीद

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

पीरी में शौक़ हौसला-फ़रसा नहीं रहा

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

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