दश्त Poetry (page 40)

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला

अब्दुल अहद साज़

सुन रहा हूँ अभी तक मैं अपनी ही आवाज़ की बाज़गश्त

अब्बास ताबिश

तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया

अब्बास ताबिश

शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना

अब्बास ताबिश

मैं अपने इश्क़ को ख़ुश-एहतिमाम करता हुआ

अब्बास ताबिश

झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का

अब्बास ताबिश

इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं

अब्बास ताबिश

दी है वहशत तो ये वहशत ही मुसलसल हो जाए

अब्बास ताबिश

अब परिंदों की यहाँ नक़्ल-ए-मकानी कम है

अब्बास ताबिश

अब मोहब्बत न फ़साना न फ़ुसूँ है यूँ है

अब्बास ताबिश

अश्कों को आरज़ू-ए-रिहाई है रोइए

अब्बास क़मर

इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी

अातिश बहावलपुरी

तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

उस के चेहरे पे तबस्सुम की ज़िया आएगी

आनन्द सरूप अंजुम

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

आल-ए-अहमद सूरूर

तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ

आग़ा अकबराबादी

पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

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