दश्त Poetry (page 2)

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

इस दश्त-ए-बे-पनाह की हद पर भी ख़ुश नहीं

ज़ीशान साहिल

मैं ने बेताबाना बढ़ कर दश्त में आवाज़ दी

ज़ेब ग़ौरी

सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना

ज़ेब ग़ौरी

पहले मुझ को भी ख़याल-ए-यार का धोका हुआ

ज़ेब ग़ौरी

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था

ज़ेब ग़ौरी

हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है

ज़ेब ग़ौरी

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

ज़ेब ग़ौरी

बे-कराँ दश्त-ए-बे-सदा मेरे

ज़ेब ग़ौरी

दुनिया की सल्तनत में ख़ुदा के ख़िलाफ़ हैं

ज़मीर काज़मी

सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ख़ाक सहराओं की पलकों पे सजा ली हम ने

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

पानी निकल के दश्त में जारी है जा-ब-जा

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हिकायत-ए-गुरेज़ाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

ख़्वाब सितारे होते होंगे लेकिन आँखें रेत

ज़ाहिद शम्सी

'अनीस-नागी' के नाम

ज़ाहिद मसूद

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से

ज़फ़र सहबाई

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

ऐ हम-सफ़र ये राह-बरी का गुमान छोड़

ज़फ़र सहबाई

मैं बिखर जाऊँगा ज़ंजीर की कड़ियों की तरह

ज़फ़र इक़बाल

कैफ़ियत ही कोई पानी ने बदल ली हो कहीं

ज़फ़र इक़बाल

ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो

ज़फ़र इक़बाल

उठ और फिर से रवाना हो डर ज़ियादा नहीं

ज़फ़र इक़बाल

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