दश्त Poetry (page 4)

ख़ुद से हुआ जुदा तो मिला मर्तबा तुझे

वज़ीर आग़ा

बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ

वज़ीर आग़ा

वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका

वासिफ़ देहलवी

क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना

वासिफ़ देहलवी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त

वसी शाह

क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए

वामिक़ जौनपुरी

जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है

वामिक़ जौनपुरी

हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें

वामिक़ जौनपुरी

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है

वामिक़ जौनपुरी

मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ

वली उज़लत

ख़त ने आ कर की है शायद रहम फ़रमाने की अर्ज़

वली उज़लत

हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते

वली उज़लत

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

वली उज़लत

तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ

वली मोहम्मद वली

दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है

वली मोहम्मद वली

लहूलुहान समुंदर भी देखना है अभी

वाजिद क़ुरैशी

लबालब कर दे ऐ साक़ी है ख़ाली मेरा पैमाना

वाजिद अली शाह अख़्तर

नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है

वाहिद प्रेमी

आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को

वहीद इलाहाबादी

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

मावरा

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

बारिश में अक्सर ऐसा हो जाता है

विकास शर्मा राज़

क़ज़ा जो दे तो इलाही ज़रा बदल के मुझे

वारिस किरमानी

खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना

वारिस किरमानी

फैला न यूँ ख़ुलूस की चादर मिरे लिए

वली मदनी

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