दश्त Poetry (page 6)

इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है

तनवीर अंजुम

ये बात दश्त-ए-वफ़ा की नहीं चमन की है

तनवीर अहमद अल्वी

फ़िशार-ए-हुस्न से आग़ोश-ए-तंग महके है

तनवीर अहमद अल्वी

अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं

तनवीर अहमद अल्वी

यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं

तालीफ़ हैदर

हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं

तालीफ़ हैदर

बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना

तालीफ़ हैदर

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

ताज सईद

सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी

बहुत से सैल-ए-हवादिस की ज़द पे बह गए हैं

तहसीन फ़िराक़ी

ये शहर आफ़तों से तो ख़ाली कोई न था

ताबिश कमाल

टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह

ताबिश देहलवी

टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह

ताबिश देहलवी

बहुत जबीन-ओ-रुख़-ओ-लब बहुत क़द-ओ-गेसू

ताबिश देहलवी

तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

'ताबाँ' ज़ि-बस हवा-ए-जुनूँ सर में है मिरे

ताबाँ अब्दुल हई

रोया न हूँ जहाँ में गरेबाँ को अपने फाड़

ताबाँ अब्दुल हई

मंज़िलों उस को आवाज़ देते रहे मंज़िलों जिस की कोई ख़बर भी न थी

ताब असलम

दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद

तअशशुक़ लखनवी

यूँ तो इख़्लास में इस के कोई धोका भी नहीं

सय्यदा शान-ए-मेराज

हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रा'नाई बहुत

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

चले हो दश्त को 'नाज़िम' अगर मिले मजनूँ

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

उस से भी ऐसी ख़ता हो ये ज़रूरी तो नहीं

सय्यद शकील दस्नवी

कुछ इस अंदाज़ से हैं दश्त में आहू निकल आए

सय्यद मंज़ूर हैदर

ये कैसी आया-ए-मोजिज़-नुमा निकल आई

सय्यद काशिफ़ रज़ा

पुल-ए-सिरात न था दश्त-ए-नैनवा भी न था

सय्यद काशिफ़ रज़ा

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

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