टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह
टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह
मो'तबर हम रहे फ़र्दा की तरह
बे-नियाज़-ए-सर-ए-साहिल हो कर
हम बहे जाते हैं दरिया की तरह
शौक़-ए-मंज़िल तो बहुत है लेकिन
चलते हैं नक़्श-ए-कफ़-ए-पा की तरह
जा मिलेंगे कभी गुलज़ारों से
फैलते फैलते सहरा की तरह
देख कर हाल-ए-परेशाँ अपना
हम भी हँस लेते हैं दुनिया की तरह
कभी पायाब कभी तूफ़ानी
हम भी हैं दश्त के दरिया की तरह
महफ़िल-ए-नाज़ में रहिए लेकिन
देखिए चश्म-ए-तमाशा की तरह
मुतमइन एक तजल्ली से नहीं
निगह-ए-जल्वा तक़ाज़ा की तरह
अपने दुश्मन से हूँ वाक़िफ़ 'ताबिश'
किसी देरीना शनासा की तरह
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