शाहों की बंदगी में सर भी नहीं झुकाया
तेरे लिए सरापा आदाब हो गए हम
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सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे
ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा
देखिए अहल-ए-मोहब्बत हमें क्या देते हैं
पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए
शर्मिंदा हम जुनूँ से हैं एक एक तार के
छोटी पड़ती है अना की चादर
आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है
टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह
बंद-ए-ग़म मुश्किल से मुश्किल-तर खुला
अज़ाब टूटे दिलों को हर इक नफ़स गुज़रा
बहुत जबीन-ओ-रुख़-ओ-लब बहुत क़द-ओ-गेसू