धूल Poetry

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

'मजाज़' की मौत पर

द्वारका दास शोला

मेरा जी चाहता है

हमीदा शाहीन

मोहब्बत हादसा है

फ़ाख़िरा बतूल

किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द

महमूद शाम

एक तो इश्क़ की तक़्सीर किए जाता हूँ

नईम गिलानी

आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से

आदिल मंसूरी

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

टीपू-सुल्तान

इज्तिबा रिज़वी

मुग़ल की कार

असद जाफ़री

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

लोग सब क़ीमती पोशाक पहन कर पहुँचे

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

बे-मुरव्वत हैं तो वापस ही उठा ले शब-ओ-रोज़

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

यूँ उठे इक दिन कि लोगों को हुआ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

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