धूल Poetry (page 34)

एक हम ही तो नहीं हैं जो उठाते हैं सवाल

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अजब तरह का है मौसम कि ख़ाक उड़ती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सहरा में एक शाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुकालिमा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ देर पहले नींद से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बन-बास

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सुख़न-ए-हक़ को फ़ज़ीलत नहीं मिलने वाली

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इन्हीं में जीते इन्हीं बस्तियों में मर रहते

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो

इदरीस बाबर

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

इदरीस बाबर

वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला

इदरीस बाबर

तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए

इदरीस बाबर

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था

इदरीस बाबर

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

देखा नहीं चाँद ने पलट कर

इदरीस बाबर

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