धूल Poetry (page 32)

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

मिरे पाँव में पायल की वही झंकार ज़िंदा है

इरम ज़ेहरा

ज़बानों पर नहीं अब तूर का फ़साना बरसों से

इक़बाल सुहैल

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

बगूला बन के समुंदर में ख़ाक उड़ाना थी

इक़बाल साजिद

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा

इक़बाल साजिद

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

बख़्शे न गए एक को बख़्शा न कभी

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया

इक़बाल कौसर

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं

इक़बाल कौसर

मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया

इक़बाल कौसर

करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें

इक़बाल कौसर

टुकड़े टुकड़े मिरा दामान-ए-शकेबाई है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

इक़बाल हैदर

जो हो सके तो कभी इतनी मेहरबानी कर

इक़बाल अासिफ़

ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई

इक़बाल अशहर

सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला

इक़बाल अशहर

दुनिया से कौन जाता है अपनी ख़ुशी के साथ

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद

लैला ओ मजनूँ की लाखों गरचे तस्वीरें खिंचीं

इंशा अल्लाह ख़ान

यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में

इंशा अल्लाह ख़ान

नींद मस्तों को कहाँ और किधर का तकिया

इंशा अल्लाह ख़ान

गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले

इंशा अल्लाह ख़ान

भले आदमी कहीं बाज़ आ अरे उस परी के सुहाग से

इंशा अल्लाह ख़ान

सीप मुट्ठी में है आफ़ाक़ भी हो सकता है

इंजील सहीफ़ा

मुझे साँसों की है थोड़ पिया

इंजील सहीफ़ा

मिटती क़द्रों में भी पाबंद-ए-वफ़ा हैं हम लोग

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

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