धूल Poetry (page 30)

दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत

रौनक़ नईम

सिलसिले ये कैसे हैं टूट कर नहीं मिलते

रउफ़ ख़लिश

ता-ब-कै मंज़िल-ब-मंज़िल हम मुसाफ़िर भागते

रऊफ़ ख़ैर

ना-ख़ुश गदाई से न वो शाही से ख़ुश हुए

रऊफ़ ख़ैर

पहुँचे न जो मुराद को वो मुद्दआ हूँ मैं

रतन पंडोरवी

जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते

रतन पंडोरवी

आस हुस्न-ए-गुमान से टूटी

रासिख़ इरफ़ानी

दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

रासिख़ फारानी

ममनूँ ही रहा उस बुत-ए-काफ़िर की जफ़ा का

रासिख़ अज़ीमाबादी

न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए

रशक खलीली

ज़िक्र-ए-तूफ़ाँ भी अबस है मुतमइन है दिल मिरा

रशीद शाहजहाँपुरी

ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल ज़ुल्म भी ढाना नहीं आता

रशीद शाहजहाँपुरी

ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल ज़ुल्म भी ढाना नहीं आता

रशीद शाहजहाँपुरी

लोग कि जिन को था बहुत ज़ोम-ए-वजूद शहर में

राशिद मुफ़्ती

अब क्या गिला कि रूह को खिलने नहीं दिया

राशिद मुफ़्ती

मैं दश्त-ए-शेर में यूँ राएगाँ तो होता रहा

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ

राशिद हामिदी

उड़ती रहती थी सदा ख़ित्ता-ए-वीरान में ख़ाक

राशिद अनवर राशिद

अज़्म-ए-बुलंद जो दिल-ए-बेबाक में रहा

राशिद आज़र

हैं बे-नियाज़-ए-ख़ल्क़ तिरा दर है और हम

रशीद रामपुरी

दिल की क्या क़द्र हो मेहमाँ कभी आए न गए

रशीद रामपुरी

छुट गए हम जो असीर-ए-ग़म-ए-हिज्राँ हो कर

रशीद रामपुरी

गुम-गश्ता मंज़िलों का मुझे फिर निशान दे

रशीद क़ैसरानी

सुर्ख़ हो जाता है मुँह मेरी नज़र के बोझ से

रशीद लखनवी

नज़र कर तेज़ है तक़दीर मिट्टी की कि पत्थर की

रशीद लखनवी

कभी गेसू न बिगड़े क़ातिल के

रशीद लखनवी

जो हवा है सूरत-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ तेज़ है

रशीद लखनवी

जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने

रशीद लखनवी

गर्दिश-ए-चश्म है पैमाने में

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

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