अजब तरह का है मौसम कि ख़ाक उड़ती है
वो दिन भी थे कि खिले थे गुलाब आँखों में
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(852) Peoples Rate This
हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला
मंसब न कुलाह चाहता हूँ
एक ख़्वाब की दूरी पर
निरवान
मैं जिस को एक उम्र सँभाले फिरा किया
सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर
हामी भी न थे मुंकिर-ए-'ग़ालिब' भी नहीं थे
जो डूबती जाती है वो कश्ती भी है मेरी
कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए
कहानी में नए किरदार शामिल हो गए हैं
घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम