मंसब न कुलाह चाहता हूँ
तन्हा हूँ गवाह चाहता हूँ
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मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ
पस च-बायद-कर्द
मुंहदिम होता चला जाता है दिल साल-ब-साल
बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है
अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई
वही है ख़्वाब जिसे मिल के सब ने देखा था
ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
कहानी में नए किरदार शामिल हो गए हैं
शिकस्त
मैं जिस को एक उम्र सँभाले फिरा किया
दिल उन के साथ मगर तेग़ और शख़्स के साथ