शिकार Poetry

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

प्यादे

मुबश्शिर अली ज़ैदी

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

यौम-ए-जम्हूर

चरख़ चिन्योटी

महा-भारत

ग़ज़नफ़र

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं

ज़िया मज़कूर

मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

नज़्म

ज़ीशान साहिल

कहीं पता न लगा फिर वजूद का मेरे

ज़ेब ग़ौरी

मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था

ज़ेब ग़ौरी

ढला न संग के पैकर में यार किस का था

ज़ेब ग़ौरी

कमाँ पे चढ़ के ब-शक्ल-ए-ख़दंग होना पड़ा

ज़मीर अतरौलवी

किस से करूँ मैं अपनी तबाही का अब गिला

यासीन ज़मीर

मुशाहिदा न कोई तजरबा न ख़्वाब कोई

याक़ूब राही

बुझते हुए चराग़ फ़रोज़ाँ करेंगे हम

वासिफ़ देहलवी

ज़मीर

वामिक़ जौनपुरी

माँ

वामिक़ जौनपुरी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद

वली उज़लत

तिरी नज़र का तीर जब जिगर के पार हो गया

वली शम्सी

हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

नायाब है सुकून दिल-ए-बे-क़रार में

वाजिद अली शाह अख़्तर

क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

फ़िक्र का कारोबार था मुझ में

विकास शर्मा राज़

फिर आज भूक हमारा शिकार कर लेगी

तारिक़ क़मर

सिसकती मज़लूमियत के नाम

तारिक़ क़मर

बड़ी हवेली के तक़्सीम जब उजाले हुए

तारिक़ क़मर

कई दिन हो गए या-रब नहीं देखा है यार अपना

ताबाँ अब्दुल हई

मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

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