शिकार Poetry (page 4)
ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
यूँही वाबस्तगी नहीं होती
इब्न-ए-सफ़ी
वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया
हीरानंद सोज़
बोसे लेते हैं चश्म-ए-जानाँ के
हातिम अली मेहर
साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
हसरत अज़ीमाबादी
इन दोनों घर का ख़ाना-ख़ुदा कौन ग़ैर है
हसरत अज़ीमाबादी
विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ
हाशिम रज़ा जलालपुरी
परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया
हाशिम रज़ा जलालपुरी
वो कज-निगाह न वो कज-शिआ'र है तन्हा
हसन नईम
आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी
हसन नज्मी सिकन्दरपुरी
सुब्ह चले तो ज़ौक़-ए-तलब था अर्श-निशाँ ख़ुर्शीद-शिकार
हमीद नसीम
वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम
हैदर अली आतिश
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
हैदर अली आतिश
हंगाम-ए-नज़'अ महव हूँ तेरे ख़याल का
हैदर अली आतिश
जम्हूरियत
हबीब जालिब
तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
हबीब जालिब
वक़ार दे के कभी बे-वक़ार मत करना
गुहर खैराबादी
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
ग़ुलाम मौला क़लक़
दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ
ग़ुलाम मौला क़लक़
पुराने जूते
ग़ुलाम अहमद फ़रीद
बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं
ग़नी एजाज़
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
ग़ालिब
गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज
ग़ालिब
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ग़ालिब
कि इस से पहले ख़िज़ाँ का शिकार हो जाऊँ
गौतम राजऋषि
अस्बाब-ए-ज़िंदगी की हर इक चीज़ है गराँ
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने
फ़व्वाद अहमद
हर शख़्स को फ़रेब-ए-नज़र ने किया शिकार
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
होश ओ ख़िरद गँवा के तिरे इंतिज़ार में
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
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