शिकार Poetry (page 2)

मेरी निगह में यार मैं उस की निगाह में

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

थर्ड-डिवीज़न

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

जिन के अंदर चराग़ जलते हैं

सूर्यभानु गुप्त

नंग-ए-एहसास है अंदोह-ए-ग़रीब-उल-वतनी

सुलैमान आसिफ़

दाम-ओ-क़फ़स न चाहिए दिल के शिकार कूँ

सिराज औरंगाबादी

जानाँ पे जी निसार हुआ क्या बजा हुआ

सिराज औरंगाबादी

इस लब कूँ कब पसंद हैं रस्मी कटोरियाँ

सिराज औरंगाबादी

हर तरफ़ यार का तमाशा है

सिराज औरंगाबादी

नज़र बहार न देखे तो बे-क़रार न हो

शिव दयाल सहाब

हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का

ज़ौक़

हज़ार दाम से निकला हूँ एक जुम्बिश में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

अजीब आदत है बे-सबब इंतिज़ार करना

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

पत्तियाँ हो गईं हरी देखो

शीन काफ़ निज़ाम

शहर में इक क़त्ल की अफ़्वाह रौशन क्या हुई

शरीक़ अदील

मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ये ख़ुशी ग़म-ए-ज़माना का शिकार हो न जाए

शमीम करहानी

बस एक वहम सताता है बार बार मुझे

शमीम हनफ़ी

न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

शकेब बनारसी

तुर्फ़ा माजून है हमारा यार

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

वो बात

शहराम सर्मदी

दम अजनबी सदाओं का भरते हो साहिबो

शाहिद अहमद शोएब

हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस

शाह नसीर

इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में

शाह नसीर

बदन-दरीदा-ओ-बे-बर्ग-ओ-बार होना भी

शाह हुसैन नहरी

क्यूँ मुश्त-ए-ख़ाक पर कोई दिल दाग़दार हो

शाह दीन हुमायूँ

पलट पलट के मैं अपने पे ख़ुद ही वार करूँ

शफ़क़त सेठी

सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया

शाद अज़ीमाबादी

न दिल अपना न ग़म अपना न कोई ग़म-गुसार अपना

शाद अज़ीमाबादी

सियाह रात के दरिया को पार करते चलो

सौरभ शेखर

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