न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

न आए नींद तो आँखों को क्या ख़ुमारी लगे

ख़ुशी नहीं थी तो ग़म से निबाह कर लेते

किसी के साथ तबीअत मगर हमारी लगे

कोई न हो कभी अहबाब के करम का शिकार

मिरी तरह न किसी दिल पे ज़ख़्म-ए-कारी लगे

हमें तड़पता हुआ ग़म में छोड़ने वाले

ख़ुदा करे कि तुझे ज़िंदगी हमारी लगे

नफ़स नफ़स हमें रोज़-ए-जज़ा से बढ़ कर है

वो शौक़ से जिए जिस को हयात प्यारी लगे

वो मर न जाए तो फिर और क्या करे ऐ 'शकेब'

वजूद अपना जिसे ज़िंदगी पे भारी लगे

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In Hindi By Famous Poet Shakeb Banarsi. is written by Shakeb Banarsi. Complete Poem in Hindi by Shakeb Banarsi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.