सरसर Poetry

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

ज़ुहूर नज़र

शब-ए-महताब भी अपनी भरी-बरसात भी अपनी

ज़हीर काश्मीरी

वो नहीं उस की मगर जादूगरी मौजूद है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

तिरी वहशत की सरसर से उड़ा जूँ पात आँधी का

वली उज़लत

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

सुनो तो ख़ूब है टुक कान धर मेरा सुख़न प्यारे

सिराज औरंगाबादी

झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

शोज़ेब काशिर

खेल

शोरिश काश्मीरी

बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए

शैख़ अली बख़्श बीमार

बाद-ए-सरसर की करामात से पहले क्या था

शनावर इस्हाक़

जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस

शहरयार

यही ठहरा कि अब उस ओर जाना भी नहीं है

सीमाब ज़फ़र

मंज़र मिरी आँखों में रहे दश्त-ए-सफ़र के

सलीम शाहिद

इक शरार-ए-गिरफ़्ता-रंग हूँ मैं

सहर अंसारी

हर शख़्स को ऐसे देखता हूँ

सादिक़ नसीम

जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल

रियाज़ ख़ैराबादी

हम मय-कशों के क़दमों पर अक्सर

रविश सिद्दीक़ी

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ

रईस अमरोहवी

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ

हज़ीं लुधियानवी

वो कज-निगाह न वो कज-शिआ'र है तन्हा

हसन नईम

किस वहम में असीर तिरे मुब्तला हुए

हमीद जालंधरी

बाद-ए-सरसर है नसीम-ए-गुलिस्ताँ मेरे लिए

हकीम मोहम्मद हुसैन अहक़र

मिरे ऐबों की इस्लाहें हुआ कीं बहस-ए-दुश्मन से

हफ़ीज़ जौनपुरी

लहू की मय बनाई दिल का पैमाना बना डाला

हफ़ीज़ बनारसी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

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