आंगन Poetry

मेरा जी चाहता है

हमीदा शाहीन

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

ढोल वाला

बुशरा सईद

एक याद

हबीब जालिब

ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया

मुझ को तेरी चाहत ज़िंदा रखती है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

काम हैं और ज़रूरी कई करने के लिए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं

ज़ुबैर रिज़वी

बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो

ज़ुबैर रिज़वी

एक ही घर के रहने वाले एक ही आँगन एक ही द्वार

ज़ुबैर अमरोहवी

ज़ेहन परेशाँ हो जाता है और भी कुछ तन्हाई में

ज़ुबैर अमरोहवी

तू किसी सुब्ह सी आँगन में उतर आती है

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

ताबा कै

ज़िया जालंधरी

विर्सा

ज़ेहरा निगाह

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

समझौता

ज़ेहरा निगाह

नया घर

ज़ेहरा निगाह

मुस्लिम मुस्लिम फ़सादात

ज़ेहरा निगाह

गुल-चाँदनी

ज़ेहरा निगाह

आँगन

ज़ेहरा निगाह

मिडिल-क्लास

ज़ेहरा अलवी

रात की ख़ामोशी का माथा ठंका था

ज़िशान इलाही

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