आंगन Poetry (page 6)

तू नहीं है तो मिरी शाम अकेली चुप है

सबीहा सबा, पाकिस्तान

वो आलम तिश्नगी का है सफ़र आसाँ नहीं लगता

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

आवाज़ के पत्थर जो कभी घर में गिरे हैं

सबा इकराम

मोजज़ा कोई दिखाऊँ भी तो क्या

रूही कंजाही

मोहब्बत का सफ़र हे और मैं हूँ

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

दर्द ग़ज़ल में ढलने से कतराता है

रियाज़ मजीद

विदा-ए-यार का लम्हा ठहर गया मुझ में

रहमान फ़ारिस

क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की

रहबर जौनपूरी

जब कभी यादों का दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब

रौनक़ दकनी

सिलसिले ये कैसे हैं टूट कर नहीं मिलते

रउफ़ ख़लिश

क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा

राशिद अनवर राशिद

अपनी क़िस्मत के हुए सारे सितारे पत्थर

रशीदुज़्ज़फ़र

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

मिट्टी जब तक नम रहती है

रसा चुग़ताई

ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

रौशनी वाले तो दुनिया देखें

राम रियाज़

सीने में जब दर्द कोई बो जाता है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

औरत कुत्ता और पड़ोस

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

ख़ानम-जान

रईस फ़रोग़

इस्फ़न्ज की अंधी सीढ़ियों पर

रईस फ़रोग़

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है

रईस फ़रोग़

आँखों के कश्कोल शिकस्ता हो जाएँगे शाम को

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू

रईस अमरोहवी

मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए

राही शहाबी

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