आंगन Poetry (page 8)

मैं फिर इक ख़त तिरे आँगन गिराना चाहता हूँ

हसन अब्बास रज़ा

इरादा था कि अब के रंग-ए-दुनिया देखना है

हसन अब्बास रज़ा

हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ

हसन अब्बास रज़ा

जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी

हम्माद नियाज़ी

घूम रहे हैं आँगन आँगन चाँद हवा और मैं

हामिद यज़दानी

मुकाफ़ात

हमीद अलमास

जितने अच्छे लोग हैं वो मुझ से वाबस्ता रहे

हमीद अलमास

छटी है राह से गर्द-ए-मलाल मेरे लिए

हमदम कशमीरी

फूल हो कर फूल को क्या चाहना

हकीम मंज़ूर

अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है

हकीम मंज़ूर

वापसी

हबीब तनवीर

उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो

हबीब जालिब

तेज़ हवाओ अब डरना घबराना कैसा

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

गुलज़ार

आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में

गुलनार आफ़रीन

हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैं

गोविन्द गुलशन

ख़ंजर को रग-ए-जाँ से गुज़रने नहीं देगा

गिरिजा व्यास

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक ख़लिश है मिरे बाहर मिरी दम-साज़ गिरी

ग़ुफ़रान अमजद

पत्थर

ग़ज़नफ़र

तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे

ग़ज़नफ़र

तुम्हारे शहर में आँगन नहीं है

ग़ौस सीवानी

आख़िर चराग़-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बुझा दिया

फ़ुज़ैल जाफ़री

उन का मंशा है न फैले ख़स-ओ-ख़ाशाक में आग

फ़ितरत अंसारी

सूरज ऊँचा हो कर मेरे आँगन में भी आया है

फ़ज़्ल ताबिश

इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था

फ़ज़्ल ताबिश

दिल के मकाँ में आँख के आँगन में कुछ न था

फ़ाज़िल अंसारी

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