आंगन Poetry (page 3)

बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है

ताज सईद

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

तहज़ीब हाफ़ी

हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुनीर

इलेक्शन

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

वो मिरा होगा ये सोचा ही नहीं

सय्यद अहमद शमीम

रंग होने लगे ज़ाहिर मेरे

सुनील आफ़ताब

सामने आँखों के फिर यख़-बस्ता मंज़र आएगा

सुल्तान अख़्तर

रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाब आँखों से चुने नींद को वीरान किया

सुल्तान अख़्तर

हंगामों के क़हत से खिड़की दरवाज़े मबहूत

सुल्तान अख़्तर

दर-ब-दर की ख़ाक पेशानी पे मल कर आएगा

सुल्तान अख़्तर

जब तू मुझ से रूठ गया था

सुलेमान ख़ुमार

साए के लिए है न ठिकाने के लिए है

सुहैल अहमद ज़ैदी

ज़बाँ को अपनी गुनहगार करने वाला हूँ

सुबोध लाल साक़ी

है जो दीवार पर घड़ी तन्हा

सिया सचदेव

जब सें तुझ इश्क़ की गरमी का असर है मन में

सिराज औरंगाबादी

लकड़ी की दो मेज़ें हैं इक लोहे की अलमारी है

सिदरा सहर इमरान

उस ने सोचा भी नहीं था कभी ऐसा होगा

सिद्दीक़ मुजीबी

सहर को धुँद का ख़ेमा जला था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

शौक़-ए-आवारा यूँही ख़ाक-बसर जाएगा

सिद्दीक़ शाहिद

लहू में डूब के तलवार मेरे घर पहुँची

सिब्त अली सबा

तिरे आँगन में है जो पेड़ फूलों से लदा होगा

शोभा कुक्कल

जो सजता है कलाई पर कोई ज़ेवर हसीनों की

शोभा कुक्कल

बे-नंग-ओ-नाम

शाज़ तमकनत

ज़ख़्म सीने का फिर उभर आया

शायान क़ुरैशी

सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब

शायान क़ुरैशी

हर बुरे वक़्त में काम आया था

शौकत परदेसी

कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था

शारिक़ कैफ़ी

सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा है

शारिक़ कैफ़ी

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