हर बुरे वक़्त में काम आया था
अगले वक़्तों का वो हम-साया था
आइने में था वो किस का चेहरा
मैं जिसे देख के शरमाया था
गिर गया आज वो बूढ़ा बरगद
मेरे आँगन का जो सरमाया था
अहल-ए-ज़र से भी ख़रीदा न गया
माया-ए-नाज़ वो बे-माया था
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अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया है
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम
हम-सफ़र
ये कैसी बे-क़रारी सुनने वालों के दिलों में है
हौसले की कमी से डरता हूँ
मुझ को जहाँ में कोई दिल-आरा नहीं मिला
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
किसी की बाज़ी कैसी घात