आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
एहसास का रुख़ मोड़ रहा हो जैसे
दुनिया के मसाइल से गुज़रने वाला
यादों की डगर छोड़ रहा हो जैसे
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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हुस्न-ए-इख़्लास ही नहीं वर्ना
हौसले की कमी से डरता हूँ
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
ए'तिबार
दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
मुझ को जहाँ में कोई दिल-आरा नहीं मिला
रात तारों से जब सँवरती है
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे