क़दम क़दम पे निगाहें पुकारती हैं मुझे
नफ़स नफ़स का कोई ए'तिबार हो तो रुकूँ
ये दिल कि था जो कभी मरकज़-ए-मोहब्बत भी
किसी के वास्ते फिर बे-क़रार हो तो रुकूँ
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मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
हर बुरे वक़्त में काम आया था
वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
हँसते हँसते बहे हैं आँसू भी
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
याद
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
एक वहशत है रहगुज़ारों में
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
हम-सफ़र
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है