क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
जो दूर से नज़र आता है अंजुमन यारो
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देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
एहसास की लज़्ज़त के क़रीब आ जाओ
हवाएँ रोक न पाईं भँवर डुबो न सके
हँसते हँसते बहे हैं आँसू भी
औरत
होश वाले तो उलझते ही रहे
यास
तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना
मायूसी
उस की हँसी तुम क्या समझो
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही