मेरी मायूस जवानी तुझे रास आ न सकी
सालहा-साल उम्मीदों के समर मिल न सके
बारहा मौज-ए-सबा पास से गुज़री लेकिन
तेरे होंटों पे तबस्सुम के कँवल खिल न सके
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उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
किसी की बाज़ी कैसी घात
एहसास की लज़्ज़त के क़रीब आ जाओ
रात तारों से जब सँवरती है
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
उस की हँसी तुम क्या समझो
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
हौसले की कमी से डरता हूँ
देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर
ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो