उस की हँसी तुम क्या समझो
वो जो पहरों रोया है
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हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
ए'तिबार
हम-सफ़र
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
आरज़ू
शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ
नज़र-नवाज़ नज़ारों की याद आती है